Wednesday, September 2, 2020

स्वयं से संवाद

स्वयं से संवाद  


ग्रसित था मन वेदना से,  छाया था अवसाद 

तब किया अंतर्मन ने स्वयं से संवाद 


भ्रम था ये न तुम्हारा की मनुष्य अपराजय है?

घुटने पर ले आया एक विषाणु का भय है 


बाहर बीमारी का साम्रराज्य,और भीतर झंजोड़ है 

पर व्यवयसिकता और स्वार्थ की अब भी अंधी दौड़ है 


घुट घुट कर दम तोड़ रही हैं मानवीय संवेदनाएं  

बढ़ रही हैं तो बस तुम्हारी मशीनी निर्भरताएँ 


चिड़िया भी चहचहा कर चुगलियां करने लगी 

बंद करने वाले हमें, पिंजरे में बंद हैं खुद ही 


एकाकी जीवन जैसे सामाजिक जंतु का अभिशाप हुआ 

फिर भी प्रकृति के दोहन का न तुम्हे पश्याताप हुआ  


बंद घरो में झाँक कर देखा , कार्यक्षमता तो भरपूर है 

जीवन के संतुलन की मगर रीड़ चकनाचूर है 


घनिष्टता और मित्रता की परिभाषा ही बदल गयी 

एक स्पर्श मात्र के लिए विछोह की पीड़ा प्रबल हुई 


बुझे चेहरों पर नकाब डाल कर जब तुम बाहर जाते हो 

औरो को तो छोड़ दो, खुद को कहाँ  पहचान पाते हो?


कोई इसी इंतज़ार में चल बसा और एक हसरत रह गयी 

जाने से पहले मिल तो लेते वो मुलाकात रह गयी 


किसी का घर छूटा किसी का कारोबार ढह गया 

तो कोई बिना कुछ बोले ये चुप चाप सह गया 


रुक कर पूछते खुद से, क्या मैं किसी का सहारा हूँ ?

कोई मुझ तक पहुंच कर हासिल हो, क्या मैं ऐसा किनारा हूँ?


सुन कर अंतर्मन का संवाद ,गहरा हुआ मन का विषाद 

पर सैकड़ो सालों की मानवता छोड़े कैसे आशावाद 


मैंने पलट कर पूछा अंतर्मन से, कोई उपाय भी तो हो 

सिर्फ परिस्थिति से विवश हो जाऊं ? मेरे सहाय भी तो हो 


हंस कर बोला अंतर्मन, झाँकने पहले भी आते 

अब विवश हो तो ही सही, मनन के मौके न गवांते 


यह परीक्षा है संतुलन की, कोई पीछे न रह जाये 

एक जुट हो कर मानवता इस कष्ट से विजय पाए 


कुछ सक्षम हैं कुछ अति सक्षम , वैश्विक परिवार ग्रस्त है 

सौहार्द, प्रेम, धैर्य और संयम, ये ही मानवता के अस्त्र हैं 


एक हाथ अपना भी बढ़ा देना, थाम लेना किसी का तुम भी 

गिर के उठना , उठ के गिरना, बस यही है नियति हम सबकी 


पीड़ा में दिन लम्बे कितने , पल पल कर के रात कटे 

सुख से उलट है रीत ये दुःख की , घट जाये दुःख जब जब बंटे 


आज अगर निराश करे तो कल फिर से आएगा

जब तक अंत भला न हो, वो अंत कहाँ कहलायेगा 


स्वप्न था संभवतः कोई, अंतर्मन कब कुछ कहता है?

हम जीवन में लीन रहते हैं वह मूक देखता रहता है 


एकांतता में हो गया मुझसे भी अपवाद  

आप भी कर के देखिये कभी स्वयं से संवाद 


स्वयं से संवाद